बच्चों में मोबाइल की लत- एक बढ़ती हुई चिंता और समाधान की राह

Grisha April 22, 2025 No Comments

बच्चों में मोबाइल की लत- एक बढ़ती हुई चिंता और समाधान की राह

बच्चों में मोबाइल की लत

“जब एक 7 साल का बच्चा बिना मोबाइल के खाना खाने से मना कर दे, तो यह सिर्फ जिद नहीं – एक चेतावनी होती है।”

आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन ने हमारी ज़िंदगी आसान बना दी है। लेकिन जब यही तकनीक बच्चों की ज़िंदगी पर हावी होने लगे, तब हमें रुककर सोचना चाहिए। भारत में बच्चों में मोबाइल की लत (Mobile Addiction in Children) एक गंभीर और तेजी से बढ़ती समस्या बनती जा रही है। आइए इस विषय को गहराई से समझते हैं।

भारत में मोबाइल लत की स्थिति

  • एक हालिया सर्वे के अनुसार, 40% माता-पिता मानते हैं कि उनके बच्चे मोबाइल के आदी हो चुके हैं।

  • 62% बच्चे प्रतिदिन 3 घंटे से अधिक समय मोबाइल पर बिताते हैं।

  • 95% माता-पिता इस लत को लेकर चिंतित हैं।

ये आंकड़े हमें चेतावनी देते हैं कि अब समय आ गया है जब इस विषय पर गंभीरता से चर्चा की जानी चाहिए।

बच्चों में मोबाइल लत के संकेत

  1. खाने के दौरान या सोने से पहले मोबाइल की ज़रूरत महसूस करना।

  2. बिना मोबाइल के चिड़चिड़ापन या गुस्सा आना।

  3. दोस्तों और परिवार से दूरी बनाना।

  4. पढ़ाई या खेलकूद में रुचि कम होना।

  5. नींद की कमी या व्यवहार में बदलाव।

मोबाइल लत का बच्चों पर प्रभाव

  • मानसिक स्वास्थ्य: अधिक स्क्रीन टाइम से ध्यान की कमी, चिंता और अवसाद जैसे लक्षण उभर सकते हैं।

  • शारीरिक स्वास्थ्य: आंखों में जलन, सिरदर्द, मोटापा और नींद में खलल।

  • सामाजिक विकास: बच्चों की सामाजिक क्षमता और इमोशनल इंटेलिजेंस पर नकारात्मक असर।

👨‍👩‍👧‍👦 माता-पिता की भूमिका

बच्चों की मोबाइल लत को रोकने में माता-पिता की भूमिका सबसे अहम है। आप इन उपायों को अपनाकर बदलाव ला सकते हैं:

✅ क्या करें:

  • स्क्रीन टाइम लिमिट करें – हर दिन के लिए समय निर्धारित करें।

  • मोबाइल का सही इस्तेमाल सिखाएं – शैक्षिक ऐप्स, क्रिएटिव गेम्स का चयन करें।

  • बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं – आउटडोर एक्टिविटीज़, कहानियाँ, साथ में खाना आदि।

  • खुद उदाहरण बनें – बच्चों को देखने से सीख मिलती है।

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डिजिटल डिटॉक्स यानी कुछ समय के लिए मोबाइल और स्क्रीन से दूरी बनाना। इसे पूरे परिवार के लिए एक साथ लागू करें। हफ्ते में एक दिन “नो-स्क्रीन डे” रखें, किताबें पढ़ें, पेंटिंग करें, साथ खेलें।

निष्कर्ष

बच्चों का बचपन उनकी हँसी, खेलकूद, जिज्ञासा और स्नेह में छिपा होता है — न कि मोबाइल की स्क्रीन पर। हमें यह समझने की जरूरत है कि तकनीक एक साधन है, लक्ष्य नहीं। बच्चों को तकनीक के गुलाम नहीं, उसका बुद्धिमान उपयोगकर्ता बनाना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए।

क्या आप भी अपने बच्चे की मोबाइल लत को लेकर चिंतित हैं? नीचे कमेंट करें और अपनी राय या अनुभव साझा करें।

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